बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- सांख्य दर्शन के तत्व सम्बन्धी विचार लिखिए।
अथवा
सांख्य के कार्यकारण सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
अथवा
असत्कार्यवाद और सत्कार्यवाद के बीच भेद कीजिए।
उत्तर-
सांख्य दर्शन में निम्नलिखित तत्व सम्बन्धी विचार पाये जाते हैं -
(1) सत्कार्यवाद.
(2) मोक्ष
(3) सांख्य दर्शन के प्रमाण विचार,
(4) सांख्य दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार,
(5) सांख्य दर्शन की समीक्षा।2
सांख्य के अनुसार, जगत का मूल प्रकृति से विकास हुआ। उसका एक विशेष कारण सिद्धान्त पर आश्रित है। सांख्य का कारण सिद्धान्त यह है कि कार्यकारण में पहले से ही अव्यक्त रूप में रहता है तथा कार्यकारण का परिणाम होता है। कार्य अभिव्यक्त कारण है। सांख्य दर्शन के अनुसार कार्य न एक नई उत्पत्ति है, न ही कारण में उसका अभाव होता है। सांख्य के अनुसार कारण और कार्य समान रूप से सत्य होते हैं और कार्य कारण का परिणाम होता है। सत्कार्यवाद के अनुसार कार्य अपनी उत्पत्ति से पूर्व कारण में पहले से रहता है। सांख्य दर्शन में कार्यकारण के सम्बन्धों का यह सिद्धान्त समस्त दर्शन का केन्द्रीय बिन्दु है। प्रकृति की व्याख्या इसी सत्कार्यवाद द्वारा की जाती है।
कार्यकारण के सम्बन्ध में सत्कार्यवाद का न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन तथा बौद्ध दर्शन का विरोध करता है। इसका विरोधी रूप असत्कार्यवाद है। इसके समर्थकों के अनुसार, असत्कार्यवादी सिद्धान्त आरम्भवाद सिद्धान्त है। इसके अनुसार कार्य को कारण में पहले से उपस्थित मान लिया जाता है। उदाहरण के लिए यदि मान भी लिया जाए तो नई उत्पत्ति का अर्थं ही नहीं रहेगा। घड़ा कार्य है और मिट्टी कारण, अगर कार्य पहले कारण में रहता तो घड़े को भी मिट्टी में पहले ही रहना चाहिए।
सत्कार्यवाद या कार्यकारण का सिद्धान्त
सांख्य दर्शन अकार्यवाद का विरोध करता है। सत्कार्यवाद के अनुसार कार्य तो कारण में पहले से रहता है इसलिए दोनों में विशेष अन्तर नहीं है।
यदि कार्य को पहले ही कारण में मौजूद नहीं माना जाए तो व्यावहारिक जगत में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, हम बालू में से तेल नहीं निकाल सकते क्योंकि बालू में तेल नहीं रहता।
सांख्य दर्शन के अनुसार, केवल योग कारण ही किसी विशेष योग्य कार्य की उत्पत्ति करता है इसलिए सूक्ष्म रूप में तथा अप्रत्यक्ष रूप से कार्य पहले ही से कारण में उपस्थित रहता है।
सत्कार्यवाद के अनुसार, कार्य अपनी उत्पत्ति से पूर्व कारण में रहता है, इसके दो प्रकार हैं-
1. परिणामवाद,
2 विवर्तवाद।
परिणामवाद के अनुसार, कार्य के उत्पन्न होने का अर्थ है कार्य का वास्तविक रूपान्तर कार्य में होना (Real transformation of the cause into the effect)। उदाहरण के लिए, हम मिट्टी और घड़े को लें, घड़ा कार्य है तो मिट्टी कारण। इस कारण के रूप में नया कार्य देखने को मिलता है। विवर्तवाद के अनुसार कार्य के रूप में कारण का जो विकार है वह वास्तविक नहीं, बल्कि एक आभास मात्र है (The change of the cause in the effect is merely apparent and not real )। उदाहरण के लिए, रात में रस्सी को साँप या साँप को रस्सी समझ लेना ये सभी विवर्त या आभास मात्र होता है। वास्तविक रूप में कारण का रूपान्तर कार्य में नहीं होता, इसे विवर्तवाद कहा जाता है।
वाचस्पति ने कार्यकारण के सम्बन्ध में चार बातों का उल्लेख किया है। कुछ लोग यह मानते हैं कि सत् असत् से तथा भाव अभाव से उत्पन्न होता है। कुछ लोग यह मानते हैं कि असत् सत् से उत्पन्न होता है। कुछ लोग यह मानते हैं कि सत् से एक चीज उत्पन्न होती है तो पहले असत् थी। सांख्य यह मानता है सत् से सत् पैदा होता है, सत् कारण से सत् कार्य पैदा होता है। कार्य की सत्ता सिद्ध करने के लिए सांख्य दर्शन कारण और कार्य की दो अवस्थाएँ मानता है। सांख्य के दो प्रकार बताये गये हैं
1.उपादान कारण,
2. निमित्त कारण।
उपादान कारण के द्रव्य से कार्य उत्पन्न होता है जबकि निमित्त कारण उपादान कारण से बाहर रहकर कार्य को उत्पन्न करता है।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
- प्रश्न- सुख प्राप्ति ही जीवन का अन्तिम उद्देश्य है। बताइये।
- प्रश्न- चार्वाक के ज्ञान सिद्धांत की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "चार्वाक की तत्वमीमांसा उसकी ज्ञान मीमांसा पर आधारित है।" विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जैन महावीर के जीवन वृत्त तथा शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति में जैन धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन में स्याद्वाद किसे कहते हैं?
- प्रश्न- जैन दर्शन के सात वाक्य भंगीनय लिखिए।
- प्रश्न- सात वाक्यों का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जैनों के बन्धन तथा मोक्ष सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य का परिचय दीजिये।
- प्रश्न- द्रव्य के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- द्रव्य को आकृति द्वारा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जीव अथवा आत्मा किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अजीव द्रव्य क्या है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
- प्रश्न- जैन दर्शन के द्रव्य सिद्धान्त की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैन धर्म पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जैन धर्म के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
- प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
- प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
- प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
- प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के उत्थान व पतन के क्या कारण थे? समझाइये।
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान बताइये।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या आशय है?
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बुद्ध ने कौन से दुःख के कारणों के चक्र बताए? बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म पर लेख प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के चार सम्प्रदाय लिखिए।
- प्रश्न- क्षणिकवाद का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निर्वाण की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाजनपदों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की क्या देन थी?
- प्रश्न- क्या बौद्ध दर्शन निराशावादी है?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के गुणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सत्, रज और तम गुण किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रकृति के गुणों के क्या परिणाम होते हैं?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के तत्व सम्बन्धी विचार लिखिए।
- प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- ज्ञानेन्द्रियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- पुरुष के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। पुरुष के अस्तित्व के लिए सांख्य द्वारा दिये गये तर्कों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य ज्ञानमीमांसा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के पुरुष की अनेकता की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन से क्या तात्पर्य है? समझाइये।
- प्रश्न- पंतजलि ने योग सूत्रों को कितने भागों में बाँटा?
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- प्रश्न- योग के अष्टांग साधन बताइए।
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- प्रश्न- योग दर्शन के पाँच नियमों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- योग' से आप क्या समझते हैं? योग साधना के विभिन्न सोपानों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
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- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
- प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
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- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
- प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
- प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
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- प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
- प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
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- प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
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- प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
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- प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
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